तिरा मुंतजिर है कोई अब तलक या
नी आज घर नहीं गया कोई अब तलक
बदलती रही फिज़ाएं रह रह कर मगर
नहीं बदला एक सख़्श का ख़ौफ अब तलक
तुझको पाकर भी नहीं भरी ख़ला
दिल में इक जगह ख़ाली है अब तलक
वो कुछ देर और ठहरता तो मैं उससे कहता
देखो ना रात कितनी हसीन है अब तलक
मैं उसे कब का भूला चुका हुॅं मगर
दिल का भरम मैंने बनाए रखा अब तलक
नोच ली फूलों की क़बाऍं किसी ने
इक हश्र है बागों में अब तलक
@Mustajaab Hasan
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